मंगलवार, 27 जुलाई 2010

वेद कुरान को एक बताने वालो का उद्देश्य समझो हिन्दुओं

सभी हिन्दू अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हुए भी ईश्वर एक है यह मानते हैं। यहाँ चर्चा हिंदुओं की मान्यता या अमान्यता को लेकर नहीं है यहाँ विषय केवल है काफी लोगो द्वारा फैलाई गयी भ्रांतियों को साधारण रूप से दूर करना क्योंकि इन भ्रांतियों में कभी-२ कुछ भोले लोग फंस जाते हैं। हिन्दू धर्म के मूल ग्रन्थ वेद हैं इसमें किसी हिन्दू को आपत्ति नहीं है इसीलिए इनके निशाने पर वेद रहते हैं। मैं यहाँ इस छोटे से लेख में दोनो पुस्तकों वेद और कुरान की समीक्षा नहीं कर रहा हूँ अभी के लिये केवल एक छोटी सी बात कहना चाहता हूँ। वैसे वेद और कुरान की आपस में तुलना करना ही तुच्छ लगता है फिर भी यदि आवश्यक हुआ तो उसको भी सप्रमाण लिख देंगे फिर कभी। अभी बस हिंदुओं एक छोटी सी बात समझ लो --

कुछ ब्लॉग जेहादियों द्वारा यह निरन्तर प्रचारित किया जा रहा है कि वेद और कुरान का एक ही सिद्धांत है वो कुरान को वेदों से और वेदों को कुरान से सत्यापित करते हैं और इस्लाम के पक्ष में माहौल बनाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। इसमें अपने धर्म से अनभिज्ञ बेचारे हिन्दू जोकि सैंकड़ो वर्षों से धोखा खाते, इस्लाम द्वारा युद्धों को झेलते, धर्मान्तरण कराते हुए, इस्लाम के नाम पर देश के टुकड़े करवाते हुए, इस्लामिक आतंकवाद से मरते हुये भी प्रेम, भाई-चारे, शान्ति से अनावश्यक रूप से अत्यधिक ग्रसित बड़े ही गर्व के साथ हाँ में हाँ मिलाकर कहते हैं – हाँ धर्म तो सभी एक हैं सभी ईश्वर को एक मानते हैं सभी प्रेम की शिक्षा देते हैं वो तो लोग ही हैं जो कुछ का कुछ बना देते हैं। भाइयो जैसे साबुत उड़द, काला पत्थर, राई, काले कपड़े इत्यादि के कुछ एक गुण एक ही होते है तो क्या वो सब वस्तुऐ एक ही हो गयी जबकि वो विभिन्न वस्तुऐं हैं। नमक और चीनी एक रंग के होते हैं किन्तु उनके स्वाद में कितना अन्तर होता है उसी प्रकार से यदि सभी मतों में ईश्वर एक माना गया भी है तो क्या शेष सभी बातों का भेद समाप्त हो जाता है। चलो थोड़ी देर के लिये मानो मैं आज एक नया मत चलाता हूँ और उस नये मत के अनुसार ईश्वर एक है यह कहता हूँ और साथ में किसी की भी हत्या करना पाप नहीं है ये कहता हूँ तो चलाया गया मत हिन्दू वेदानुसार कहलायेगा क्या? कुछ हिंदुओं को अपनी इतिहास में मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा की गयी बर्बादी को देखकर भी अक्ल नहीं आई तो कब आएगी और आज भी इस्लाम के आधार पर तुम्हे मारा जा रहा है तुम्हारा धर्म-भ्रष्ट (कथित धर्म-परिवर्तन) किया जा रहा है। तुम्हरे ही मुंह पर ही तुम्हारे धर्म-ग्रन्थों का मजाक उड़ाया जा रहा है। मजे की बात यह है कि ये जेहादी वेदों का अर्थ अपने अनुसार दिखाके या अनाप-शनाप बक कर उनका मजाक उड़ाते हैं उनकी निंदा करते हैं, उसको अमान्य ठहराते हैं और फिर वेदों से ही कुरान की पुष्टि करते फिरते हैं। पुराणों का मजाक उड़ाया जाता है फिर कहीं से भविष्य पुराण के आधार पर ही मोहम्मद को अन्तिम अवतार घोषित किया जाता है। कुरान के अनुसार इस्लाम में अवतारवाद को अमान्य ठहराते हैं और अपने मजहब-प्रवर्तक को अन्तिम अवतार घोषित करते हैं। क्या मजाक लगा रखा है ये फिर भी कुछ हिन्दू लोगो की बुद्धि पर तरस आता है जो इनके प्रत्यक्ष छल को अन्धों की भांति देख ही नहीं पाते। कुरान या किसी भी मत में कुछ बात यदि सही भी लिखी हैं मतलब कि वैदिक पुस्तकें भी उन कुछ बातों को मान्यता देती हैं किन्तु शेष सब बातों को गलत और अमान्य ठहराती हैं तो क्या वो मत वेदानुसार हो जायेंगे क्या? हिंदुओं मोहम्मद साहब का इतिहास और उसके विचार तो पढ़ो फिर बताना कि क्या इस्लाम कम्युनिज्म की तरह एक साम्राज्यवाद नहीं है क्या, जिसको तुम जाने-अनजाने धर्म की संज्ञा देते हो। क्या तुम्हे इन प्रत्यक्ष जेहादियों की धूर्त सोच दिखाई नहीं देती जो तुम्हें डंके की चोट पर गाली देते हैं, तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं फिर भी तुम इनका आलिंगन करने के लिये बेक़रार रहते हो। पूरा देश भी इसीका प्रत्यक्ष उदाहरण है पाकिस्तान से हजार जूते खाने पर भी उससे प्रेम की पींगे बडाई जा रही हैं। यहाँ का मीडिया, फिल्में, टी।वी। नेता इत्यादि सभी पाकिस्तान से प्रेम और भाई-चारे की बात करते नहीं थकते जबकि पाकिस्तान यहाँ के लोगो की खोपड़ी में सूराख भी करता रहता है और इनके मुंह पर थूकता भी है।

अब बहुत से हिंदुओं को भी इनके साथ ही इस लेख से आपत्ति हो सकती है कि तुमतो अमन, चैन-शान्ति भंग करने पर तुले हो तुम्हारा उद्देश्य क्या है वगैरहा-२ । बताओ जी कौन सी शान्ति की बात करते हैं ये लोग इनकी बुद्धि को क्या हो गया है इतना मजहब के नाम पर अत्याचार होने पर और मारे जाने पर भी इनकी अक्ल सही नहीं होती तो क्या कोई कर सकता है। हर जेहादी या आतंकवादी लोगो की हत्या के बाद डंके की चोट पर उसको इस्लाम के अनुसार बताता है, इन्हि के कुछ साथी इस बात को प्रसारित करते है कि यह मुसलामानों पर हुए अत्याचार की प्रतिक्रिया है, कुछ समर्थक कहेंगे ये भटके हुए जवान हैं आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता पर साथ में वो हत्यारे जेहादी खुलकर चिल्ला-२ कर कहते रहेंगे हम इस्लाम का युद्ध लड़ रहे हैं पर हिन्दू को उन जेहादियों की आवाज़ नहीं सुनाई देती वो तो ढोंग भरी शान्ति या कायरता में ही मग्न रहता है ।

मेरा उद्देश्य सत्य से अवगत कराना है हो सके तो हो जाओ वरना परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहो। अभी तो पकिस्तान, बंगलादेश, काश्मीर और आंशिक कुछ प्रदेश ले ही लिये हैं आगे-२ देखना यही हिंदुओं की सोच रही तो ये सारा भारत ले लेंगे। इन जेहादियों का साथ कुछ तथाकथित हिन्दू संत भी दे रहे हैं जोकि भेड़ की खाल में भेडिये हैं जो कि इनके साथ मिलकर शान्ति का राग गाने वाली हिन्दू भेड़ों(मूर्खों) को चुप-२ निगल रहे हैं। उदाहरण के तौर पर एक कथित शंकराचार्य है, एक तथाकथित आर्यसमाजी अग्निवेश है ऐसे ही और भी हैं और कुछ लोगो को भी सन्यासी के भेष में लाकर इस्लाम की तारीफ़ करवाते फिरते हैं वेदों के अनुसार बतलाते हैं। यदि इनकी धूर्तता कुछ लोगो को नहीं दिखाई देती उनके बारे में यही कह सकते हैं--

विनाशकाले विपरीत बुद्धि !!

रविवार, 25 जुलाई 2010

क्या शूद्र को विद्याप्राप्ति का अधिकार नहीं है ?

शास्त्र के अध्यन तथा ब्रह्मा की उपासना आदि में मनुष्यमात्र का अधिकार है, इस तथ्य का विवेचन भारतीय साहित्य के विभिन्न स्थलों में विविध प्रकार से किया गया है । बादरायण व्यास-प्रणीत ब्रह्मसूत्रों में भी इसका एक प्रसंग है। सूत्रकार ने इस प्रसंग [१३२५-३३] के द्वारा विद्याध्यन एवं ब्रह्मोपासना आदि में मनुष्यमात्र के अधिकार का निश्चय किया है। पर एक छान्दोग्य [४११-२] प्रसंग के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि विद्याध्यन आदि में शूद्र को अधिकार नहीं होना चाहिये। वहां एक आख्यानक है- जानश्रुति पौत्रायण नामक व्यक्ति रैक्व नामका ऋषि के पास जाता है; उसे बहुत-सा धन, गौ आदि देकर ब्रह्मविद्या की शिक्षा के लिये प्रार्थना करता है। ऋषि रैक्व उसे दुत्कार देता है, और कहता है –अरे शूद्र! गौ , धन आदि अपने ही पास रख, मुझे इसकी आवश्यकता नहीं, चला जा !’ इससे समझा जाता है कि शूद्र को विद्या में अधिकार नहीं होना चाहिये।

इसी प्रसंग के ब्रह्मसूत्रों [२३३४-६५] में स्पष्ट किया गया है कि जानश्रुति को ऋषि ने शूद्र क्यों कहा। वस्तुतः वह क्षत्रिय राजा था। वह अपना अनादर सुनकर शोक को प्राप्त हुआ , अथवा शोक के कारण वह रैक्व ऋषि के पास दौड़ा आया ; इन भावनाओं को अपनी अन्तरदृष्टि से ऋषि ने पहले ही समझकर उसको शूद्र कहा; यहाँ पर शूद्र-वर्ण का कोई प्रसंग नहीं है। उपनिषद में इस पद के प्रयोग को भ्रान्ति से वर्ण-परक न समझा जाए, इसीलिए सूत्रकार ने इसकी विशिष्ट व्याख्या की है। इससे विद्याप्राप्ति में शूद्रवर्ण के अधिकार के लिये किसी प्रकार की बाधा नहीं आती। विद्या में मनुष्यमात्र का अधिकार है, इस तथ्य को सूत्रकार ने प्रथम [१३२५] निश्चित कर दिया है, इसी के अनुसार शूद्र में उत्पन्न विदुर तहत अन्य मातंग व्यक्तियों के वेदादि अध्यन का उल्लेख इतिहास में मिलता है।

जिस प्रकार किसी कम बुद्दी वाले व्यक्ति को हम मुर्ख, मंदबुद्धि कहते हैं उसी प्रकार से शूद्र का अर्थ लेना चाहिये। शूद्र कोई जन्म आधारित जाति नहीं है शास्त्र में यह कहीं पर उन लोगो के वर्ग के लिये कहा जाता है जो ज्ञान को प्राथमिकता न देकर धूर्तता, मूर्खता आदि में लिप्त मनुष्य होते हैं या किसी उद्दण्ड, स्वार्थी इत्यादि दुर्गुणों वाले व्यक्ति के लिये कहा जाता है। यदि आप शास्त्र में कहीं शूद्र पढते हैं तो वहां वो किस प्रसंग में वर्णित है उस पर गौर कीजिये न कि उसको तथाकथित आधुनिक जाति समझकर भ्रान्ति में पडिये। वर्ण व्यवस्था को जन्म आधारित बनाने वाले व्यक्ति पण्डित या ब्राह्मण नहीं स्वयं शूद्र हैं। उदाहरण के लिये एक चोर, डाकू, स्वार्थी, धूर्त, मंदबुद्धि आदि व्यक्तियों (शूद्रों) के पुत्रों अथवा पुत्रियों को भी विद्या अध्यन का पूर्ण अधिकार है क्योंकि यह सम्भव है माता-पिता के दुर्गुणों में लिप्त होने पर भी या मंदबुद्धि होने पर भी पुत्र में ये दोष न हों और वह विद्याध्यन का अभिलाषी हो। इसीलिए शूद्रों पर अत्याचार को शास्त्र को दोष न देकर सत्य से अवगत होइये। एक मुर्ख मुस्लिम व्यक्ति ने शास्त्र पर यह आरोप लगाया कि बचपन में शूद्र का उपनयन संस्कार वर्जित है। जिसने आरोप लगाया वो तो शूद्र, धूर्त या जेहादी है किन्तु विचारवान व्यक्ति को समझना चाहिये शास्त्र में ऐसा क्यों लिखा है –इसका कारण है उपनयन संस्कार में बालक को प्रतिज्ञा करायी जाती है कि वह अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए विद्या की प्राप्ति करेगा। शूद्र के लिये यह संस्कार वर्जित है –इसका कारण यह है कि बचपन में ही यदि बालक अत्यन्त उद्दण्ड, प्रमादी, आलसी है या मंदबुद्धि है तो उसको यहाँ शूद्र कहा गया है और उसकी प्रतिज्ञा में संदेह रहता है। ऐसा नहीं है कि एक तीव्र बुद्दी वाला बच्चा प्रत्येक बात पर खरा उतरता है किन्तु फिर भी उसके लिये भविष्य में ऐसी सम्भावना कम होती है।

कुछ महानुभव तैतरीय संहिता के ‘शूद्रो यज्ञेअनवक्लृप्तः’ सन्दर्भ के आधार पर कहा करते हैं कि यज्ञ में शूद्र असिद्ध है, असमर्थ है; उसे यज्ञ में सम्मलित नहीं किया जाना चाहिये। तो महानुभवों यह प्रसंग ऐसे व्यक्तियों के लिये है, जो प्रयत्न करने पर भी वेद आदि का अध्यन नहीं कर पाते हैं। इसी कारण मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते, पर यज्ञों के अवसर पर मन्त्रों के अनाप-शनाप उच्चारण के दुस्साहस का प्रयास करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को मन्त्रोच्चारयिता के रूप में यज्ञों में भाग लेना निषिद्ध किया गया है। यह निषेध शूद्रवर्ण के विद्या में अधिकार न होने का प्रतिपादन नहीं करता। विद्या अध्यन आदि के लिये प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण अवसर दिया जाना शास्त्रसम्मत है। यदि अनधीतशास्त्र व्यक्ति भी ब्रह्माविद्या-विषयक या किसी भी विषय पर उपदेश चाहता है तो वह ले सकता है; इसमं किसी प्रकार की शास्त्रीय बाधा नहीं है। जो व्यक्ति यह समझते हैं कि शूद्र के विद्याध्यन का शास्त्र निषेध करता है, वस्तुतः वो भ्रान्ति में हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि छान्दोग्य के उक्त प्रसंग में शूद्र-पद का प्रयोग शूद्रवर्ण की भावना से नहीं है। क्योंकि रैक्व ऋषि द्वारा जानश्रुति के यहाँ विद्या का उपदेश दिया जाना सिद्ध है। उपनिषद के अनुसार प्रथम जैसे शूद्र कहकर उपदेश देने से नकार किया , ऐसे ही पुनः ‘शूद्र’ कह कर उपदेश दिया। वैदिक साहित्य में कोई ऐसा उल्लेख उपलब्ध नहीं है जिससे मनुष्य के किसी निर्धारित वर्गविशेष को विद्या आदि में अनाधिकारी सूचित होता हो।

शेष आगे ...