गुरुवार, 21 जनवरी 2010

मिथ्या प्रचारको को मेरा सन्देश

मैंने अभी हाल ही में ये ध्यान दिया है कुछ मुस्लिम ब्लोगकर्ता अपने ब्लॉग पर और अपनी टिप्पणियों के माध्यम से कुछ पुस्तकों का प्रचार बड़े ही लगन और परिश्रम से कर रहे हैं, उन पुस्तकों से उधृत बातों का वो अपने कुतर्कों में भी स्थान-स्थान पर वर्णन करते हैं। वैसे तो मैं उनके इन अनर्गल प्रलापों पर ध्यान नहीं देता किन्तु मुझे जब बड़ा आश्चर्य होता है कि उनके इस काम में कुछ हिन्दू भी योगदान दे रहे हैं। मुझे हिन्दू, मुस्लिम या इसाई से कोई बैर नहीं है किन्तु लोगो के कुतर्कों और मनगढ़ंत से आपत्ति है चाहे वो हिन्दू हो , मुस्लिम हो या इसाई, किन्तु जब कोई हिन्दू अपने धर्म से अन्भिज्ञ होकर कुतर्क का साथ देता है तो ऐसा लगता है कि इन मुस्लिम ब्लोगकर्ता का उद्देश्य पूर्ण हो गया, हालाँकि मैं जनता हूँ इन हिन्दुओं में अधिकतर हिन्दू न हो कर नए रिलिजन राष्ट्र विरोधी तथा हिन्दू विरोधी सेकुलरिज्म से आते हैं पर फिर भी इन लोगो की बातों में कुछ भोले हिन्दू फंस ही जाते हैं। तो इस कारण मैं इनकी इन बेसिरपैर की बातों से भरी पुस्तकों की उन बातों का जिसका ये प्रचार कर रहे हैं उसको तार्किकता की कसौटी पर रखने का समय-२ पर अपने ब्लॉग द्वारा प्रयास करूंगा। मेरे एक लेख पर टिप्पणी द्वारा छोड़े गए हाइपरलिंक से खुली एक पुस्तक "दयानंद ने क्या खोजा क्या पाया" जोकि किसी डॉ। अनवर जमाल द्वारा लिखित है उसकी संकीर्ण और मुर्खता भरी बातों को यहाँ रख कर उसकी समीक्षा भी करूंगा और कुछ मुस्लिम ब्लोग्कर्ताओं द्वारा मिथ्या प्रचारित कि हिन्दू धर्म ग्रंथो में लिखा है मोहम्मद साहब अंतिम अवतार हैं उसको भी तर्क की कसौटी पर रखा जायेगा। दयानंद सरस्वती से मुसलमानों को क्यों सबसे अधिक समस्या होती है जिन लोगो को ये नहीं पता ये बात भी मैं बताऊँगा। कृपया समय-समय पर अपने विचार टिप्पणियों के माध्यम से अवश्य दें।


मैं कोई आर्य समाज का पंजीकृत सदस्य नहीं हूँ और न ही इसकी कोई अनिवार्यता मानता हूँ बल्कि आर्य समाज हिन्दुओं की मूलभूत विचार धारा है वास्तव में दयानंद सरस्वती उसके प्रवर्तक न होकर पोषक हैं। जैसा की उन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में स्वयं कहा है की मैं कोई नया मत नहीं चला रहा हूँ केवल सत्य को सामने रखने का मेरा उद्देश्य है। उस समय अंग्रेजो द्वारा यह बहुत अधिक प्रचारित किया जा रहा था कि आर्य एक जातिसूचक शब्द है और यह जाति बहार से भारत वर्ष में आई थी जिसने यहाँ के मूल निवासियों द्रविड़ पर आक्रमण किया और इस देश पर अधिकार कर लिया। इस असत्य के प्रचार से उनको लाभ यह हुआ कि एक तो भारत को २ वर्गों में विभाजित कर दिया और दूसरे लोगो के स्वाभिमान और देश प्रेम पर आघात किया, कुछ लोग इसको सत्य मानकर सोचने लगे की पहले हमारे पूर्वजों ने आक्रमण करके यहाँ अधिकार जमाया अब अंग्रेजों ने कर लिया तो क्या अंतर पड़ता है। अंग्रेजो की प्रतिनिधि कांग्रेस इसका प्रचार अब भी निरंतर करती आ रही है और इसके अलावा इतिहास के सारे असत्य तथ्य जोकि मैकाले पद्दति कहलाती है आज भी ज्यूँ के त्यूं भारत में पढाये जा रहे हैं। खैर अभी यहाँ इसके बारे में अधिक न लिखते हुए मैं यह बताना चाह रहा था की दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज नाम उनके कुप्रचार के विरुद्ध ही चुना था की भारत में पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण में रहने वाले समस्त हिन्दू ही आर्य कहलाये जाते हैं न की कोई बहार से आक्रमणकारियों की टोली यहाँ पर आई थी। उन्होंने हिन्दुओं में फैले हुए अंधविश्वासों और पाखंडों को समाप्त करने की द्रष्टि से लोगो से कहा कि इन मुर्खता भरे क्रिया-कलापों को छोड़ कर हिन्दुओं के विद्वानों के समाज अथवा आर्य समाज में आ जाओ। उनके मरने के पश्चात् आर्य समाज में उसके नाम के विपरीत काफी सारे अविद्वान और चालाक लोग भी शामिल हो गए जैसे कि फिलहाल स्वामी अग्निवेश जैसे लोग हैं। बहुत से मुर्ख अपने को आर्य समाजी बताते हैं और कहते हैं कि हम हिन्दू ही नहीं हैं या फिर बहुत से गैर अनार्य समाजी कहते हैं कि आर्य समाज हिन्दुओं के विरुद्ध मत हैं। अब यहाँ इसे इन लोगो की नसम्झी, अज्ञानता या बुद्धि का दिवालियापन ही कह सकते हैं कि जिसने इस आर्य समाज कि नीव रखी उसकी बातों को अनसुना करके अनाप-शनाप बकते हैं। मैंने एक बात देखी है अधिकतर लोग सत्य का अन्वेषण कम और सुनी हुई बातों पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं। मनुष्य को ईश्वर ने इतना बुद्धिमान तो बनाया है कि बिना तर्क के किसी बात को नहीं मानना चाहिए किन्तु फिर भी बहुत से व्यक्ति आसानी से गलत बातों को स्वीकार लेते हैं और कुछ मनुष्यों को आप कितना ही तर्क देलें वो फिर भी अपनी बात मनवाने के लिए कुतर्कों के सहारे हमेशा व्याकुल रहते है। सच में मानव कि बुद्धि बड़ी जटिल है और वो वोही मानना चाहती है जैसे उसको संस्कार मिले हैं चाहे सही या गलत और कुछ बुद्धिमान लोग ही उन गलत संस्कारों को ज्ञान से नाप-तौलते हैं अन्यथा बाकी तो सब भेड़-बकरियों कि तरह ही व्यवहार करते हैं।

जैसा की पूर्व में मैं १-२ बार पहले भी लिख चूका हूँ १२५ वर्ष पहले मह्रिषी दयानंद सरस्वती ने एक बात दिशाविहीन हिंदू जनता के बारे में कही थी की हिंदू एक लुप्त प्रायः वर्ग है। आज यह उनकी बात एक बुद्धिमान व्यक्ति फलित होते देख सकता है ऐसा उन्होंने क्यों कहा था। आज आर्यों या हिन्दुओं के अपने गृह भारत वर्ष में आतंकवादी घोषित किया जा रहा है और ये कार्य हिन्दुओं द्वारा ही हो रहा है। न अपने देश में वरन पूर्ण विश्व में इसको बड़े ही चालबाजी से प्रसारित किया जा रहा है। जो नेता आज तक आतंकवाद को मुस्लिम आतंकवाद कहने से डरते हैं वो आज हिंदू आतंकवाद कहने में बेहिचक गर्व महसूस करते हैं और ये हिंदू जनता मौन धारण किए हुए हाथ पर हाथ रख कर बैठी हुई है। ये तो ये बात हुई जैसे किसी के गृह में चोरी होने पर उसके गृह स्वामी पर ही आरोप मढ़ दे। सर्वप्रथम हिन्दुओं को आत्म मंथन विचार करना चाहिए की क्या सनातन धर्म या वैदिक धर्म या हिंदू धर्म का अनुसरण करने वाला एक आतंकवादी हो सकता है। कुछ सेकुलर लोग महाभारत को भी आतंकवाद की संज्ञा देते हैं क्युकी श्री कृष्ण ने इसको धर्म युद्ध कहा था। इसी प्रकार गुरु गोविन्द सिंह को भी आतंकवादी करार देते हैं उनकी मुर्खता के तो कहने ही क्या। मैं एक बात उनलोगों से पूछना चाहता हूँ की उनको धर्म का अर्थ भी पता है या नही उनकी अल्प और संकीर्ण बुद्धि धर्म, मजहब और रिलिजन को पर्यावाची शब्द समझती है जबकि धर्म और बाकि सब में धरती आकाश का अंतर्भेद है। सनातन या हिंदू धर्मं मनुष्य को मनुष्यत्व के मूल भूत सिद्धांत जैसे की ब्रहमचर्य, ईश्वर ध्यान, समाधी सज्जनों से प्यार, न्याय, दुष्टों को दंड, सभी जीवधारियों पर दया भाव आदि अनेक जीवन के सिद्धांतों के साथ-२, विज्ञान, गणित और जगत रहस्यों को समझाता या सिखाता है।


वादी-प्रतिवादी किसी बात पर शास्त्रार्थ करते हैं तो उनका उद्देश्य सत्य को जानना और उसका निर्धारण करना होता है। और इस शास्त्रार्थ या तर्क-वितर्क के कुछ नियम होते हैं जभी निष्पक्षता से सत्य का निर्धारण संभव होता है अन्यथा वो मुर्खता भरा प्रलाप ही होता है। उदाहरण के तौर पर कोई यदि ये कहे कि जल में उष्णता होती है अर्थात स्वाभाव से जल गर्म होता है क्योंकि लोग बोलते हैं पानी या जल से मैं जल गया हूँ तो उसके उत्तर में मैं यह कहता हूँ लोक व्यवहार में ऐसा बोलते हैं कि पानी या जल से मैं जल गया हूँ किन्तु उस जल में उष्णता अग्नि की ही होती है क्योंकि बिना अग्नि के संपर्क में आये बिना जल में उष्णता नहीं आ सकती जैसे गर्म लोहे की छड़ी में दाहकता भी अग्नि की होती है लोहे की नहीं और ये हम प्रत्यक्ष अनुभव भी कर सकते हैं और यदि ऐसा नहीं है तो आप मुझे इसका प्रमाण दीजिये। अब प्रतिवादी को पता है की सामने वाला सही कह रहा है किन्तु फिर भी अपनी बात मनवाने के लिए मैं ये कह रहा है ऐसा नहीं है मैंने तो जल के प्राकृतिक गर्म स्रोत देखे हैं मैं नहीं मानता या फिर ये कहने लगे की बड़ा ज्ञानी बनते हो तो ईश्वर को सिद्ध करके दिखाओ या यह कहने लगे की तुम्हारे धर्म में तो ऐसा या वैसा लिखा है या फिर कोई और बात विषय के अनुरूप न कहके कुछ भी कहने लगे तो सबसे पहले तो गर्म स्रोत वाली बात को कह कर वह अपनी पहली बात को ही दोहरहा रहा है जबकि उसका तर्क पहले ही दिया जा चुका और उसकी दूसरी बात सिद्धांतविरुद्ध बात कहलाती है इसका मतलब है प्रतिवादी के पास कोई तर्क नहीं है और वह विषय से हटा रहा है और सत्य को स्वीकारना नहीं चाहता अर्थात वो हार गया है। इसके अलावा और भी कुछ नियम हैं किन्तु मैं उनको यहाँ अभी इसी लेख में नहीं लिखता। यहाँ ब्लॉग जगत में अधिकतर इन्ही नियमों का उलंघन होता है।मैं यहाँ यह इसलिए लिख रहा हूँ कि बहुत से लोग ऐसा प्रयास करेंगे या कर सकते हैं किन्तु बुद्धिमान व्यक्ति को उनके छल भरे कुतर्कों को समझना चाहिए।

मैं समय न मिलने और कुछ व्यक्तिगत कारणों से बहुत ही कम लिख पा रहा हूँ पर मैंने अब यह सोचा है की कम से कम प्रत्येक सप्ताहन्त में एक लेख अवश्य लिखने का प्रयास करूँगा। यह लेख पहले से ही बहुत लम्बा हो गया है इसीलिए इसको यहीं समाप्त करते हुए अगले भविष्य में कुछ पुस्तकों की तर्कसंगत समीक्षा के साथ-२ ऐसे पहलूँओं पर विचार डालूँगा जो काफी चर्चित हैं विवादस्पद रहते हैं जैसे "शाकाहारी या मासांहारी", "क्या ईश्वर है", "क्या मूर्तिपूजा छोड़ने से हिन्दू मुस्लिम हो जायेंगे", "क्या मूर्तिपूजा महत्वपूर्ण है", "अहिंसा परमोधर्मः, सर्वधर्मसमभावः, अतिथिदेवोभवः का भावार्थ" आदि अनेक ऐसे प्रवाद हैं जिनका निदान होना आवश्यक है। और सोचता हूँ जाकिर नाइक जैसे वकीलों की बातो का भी खंडन होना आवश्यक है तो उस पर भी लिखने की इच्छा है। मैं अपने लेखो में सदा यह प्रयास करूंगा की प्रत्येक बात तर्कपूर्ण हो और आशा करता हूँ लोगो को यह कार्य पसंद आएगा।

9 टिप्‍पणियां:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

शुभकामनाएँ। मैं अनुसरण करूँगा।

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया, तर्कपूर्ण और विषय से सम्बन्धित लेख…

अनुनाद सिंह ने कहा…

बन्धुवर, आपका स्वागत है।

मेरा एक सुझाव है। आप मूर्खों के वक्तव्यों का खण्डन कभी-कभार और बहुत आवश्यक होने पर ही करें। उसके बजाय हिन्दू धर्म की अच्छी, सत्य एवं तर्कपूर्ण बातों को सदा आगे लाइये। इसी की सदा जीत हुई है, यही आगे भी जीतेगा। मानव का इतिहास कोई पाँच स या एक हजार वर्ष का नहीं है। यह लाखों करोड़ों वर्षों का इतिहास है।

दूसरी बात यह है कि इस ब्लॉगमण्डल में बहुत से छद्मवेशधारी और छद्मनामधारी आदि भी विचरण कर रहे हैं। आप उनके नामों से उनके धर्म का अन्दाजा लगाने की भूल मत कीजिये।

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

सुन्दर तार्किक विवेचन !

सौरभ जी जब कभी आर्य समाज, ISKCON ... आदि आध्यात्मिक संगठन से जुड़े लोगों के मुह से ये बात सुनता हूँ की ISKCON या आर्य समाज हिन्दू या सनातन धर्म का अंग नहीं है, तो क्षोभ और उनकी मुर्खता पे हसी भी आती है | गधा कहीं भी चला जाए (मंदिर, मस्जिद...) रेंकने से बाज नहीं आयेगा |

हिन्दुओं को अपने ही धर्म का सही ज्ञान नहीं है और होगा भी कैसे बचपन से ही अपने को मेकाले की संतान साबित करने मैं जुटे रहते हैं | थोड़ा बड़ा हुआ, नौकरी करने लगे तो modern बनने के चक्कर में सत्य से मुह फेर लेता है | आज हिन्दुओं को अपने धर्म के बारे मैं सही ज्ञान पाने की इछाशाक्ती है ही नहीं, रोज कम से कम २-४ घंटे TV पे उल-जलूल जरुर देखेंगे पर एक प्रमाणिक ग्रन्थ पढने की कोशिश कभी नहीं करेंगे | ऐसे लोगों का सनातन धर्म ज्ञान TV एंकर द्वारा कहे गए बकवास पे ही आधारित होता है |

असत्य का विरोध हम सबों को मिल कर करना है ...

बेनामी ने कहा…

Apki punah upasthiti ke liye dhayvad.

बेनामी ने कहा…

छोड़िए भाई साहिब क्यों दूसरों का पाप अपने सर लेना चाहते हैं, सत्य की खोज करने दीजिए लोगों को, आप यदि पंडित हैं तो सत्य तथा असत्य क्या इसे अवश्य जान रहे होंगे, यदि नहीं तो कभी क़ुरआन का अध्ययन कर के देख लीजिए। या कल्कि अवतार मुहम्मद साहिब की जीवनी की तुलना अपनी धार्मिक ग्रन्थों से कर लीजिए पता चल जाएगा कि आप कहाँ हैं और कहाँ होना चाहिए था। धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

sourabh ji aap mahan maharshi dayanand ji ke bato ko samne rakh rahe hai dhanyawad jan dayanand ji aur vivekanand ji bolte the puri duniya sunti thi aur anusaran karti thi aaj bhi itne vidvan hai par aaj jai ho wale congress ne puri naiya dubo di aaj sawarkar , bossji , aur hakikatray jaise insan hai par sarkar ke gande rajniti main dub gaye

ZEAL ने कहा…

.
बेनामी जी की टिपण्णी से पता चला आप यदा कदा ही अवतरित होते हैं। लेकिन जब होते हैं, तब कुछ नया ही सीखने को मिलता है। आपकी सभी पोस्टें पढ़ीं । बहुत ज्ञान-वर्धन हुआ।

आपका आभार।
.

Yash ने कहा…

यहाँ अग्निवेश का पूरा कच्चा चिटठा है http://alturl.com/7njd2