बुधवार, 19 नवंबर 2008

तंत्र - अविद्या

तंत्र विद्या एक ऐसा ढोंग है जोकि मुर्ख वाम-मार्गियो से प्रारम्भ हुआ था और उसीकी एक शाखा है। जिस तरह शैव मत वाले शिव के लिंग की पूजा करते हैं वाम-मार्गी, देवी जो शिवजी की पत्नी है उसके उपासक हैं ये मुर्ख लोग क्वारी कन्या(१२-१६ वर्ष के मध्य उम्र) को नग्न करके उसको देवी बनाकर उसके कोमार्य की उपासना करते हैं जिसको ये भैरव चक्र बोलते हैं जिसमें ये सब मदिरा का देवी को भोग लगा कर उसका प्रसाद आपस में एक ही पात्र में पीते हैं और सभी स्त्री -पुरूष लोग आपस में एक साथ मिलकर शारीरिक सम्बंध बनाते हैं और एक दूसरे के मूल-मूत्र उलटी तक खा जाते हैं(विदेशो में इसी तरह के नाईट-क्लब्स और पोर्नोग्राफी आधुनिक भैरव चक्र रूप है जो और भी अधिक विकृत हो चुका है) । बेड़ागर्क हो इन लोगो का ये है इन महामुर्खो का तरीका इश्वर की आराधना करने का अब इन महामुर्खो से कोई इन घिनोने कार्यो के बारे में पूछे तो आप को कुछ मंत्र-तंत्र बताएँगे जो इन्ही की तरह कुछ लोगो ने कपोल-कल्पित बनाये हुए हैं इन तंत्रों-मंत्रो का कही भी किसी भी आप्त ग्रन्थ में वर्णन नहीं मिलेगा। आज-कल भारत में इस तरह के भैरव चक्र तो शायद ही मिलेंगे किंतु यह मत और अंधविश्वास रूप में आप को मिल जाएगा। मूलतः इस मत का उदभव महाभारत काल के पश्चात का है क्युकी उस समय विद्वानों की कमी होने के कारण कुछ स्वार्थी, मुर्ख लोगो ने वेदों और आप्तग्रंथो की मनमाने ढंग से व्याखा की और उनका ग़लत अर्थ बताकर लोगो को बहकाया, उसी की आधुनिक शाखाएं ये तांत्रिक, देवी पर शराब चढाने वाले, यज्ञो में बलि देने वाले, झाड़-फूंक वाले,कब्रिस्तान वाले मोलवी, जादू-टोटके वाले, राख मलने वाले, लाश खाने वाले अघोरी आदि मुर्ख लोग हैं जो इस अपने अमूल्य जीवन का सर्वनाश करने में लगे हुए हैं और साथ में और लोगो का भी जो इनकी बातो में आकर इनका अनुसरण करने लगते हैं। इन्होने बहुत से संस्कृत में अपने अनुसार मंत्र आदि बनाये हुए हैं जिन्हें सुनाकर ये जनता को ठगते हैं । ऐसे-ऐसे मत यदि भारत वर्ष में होंगे तो क्यों न बेडा गर्क होगा इस देश का और इन्ही लोगो के कुकर्मो से निजात पाने के लिए जैन, बोद्ध आदि साम्प्रदायिक मत चल निकले थे इस देश में और मूल विद्या का हृयास होने से देश और विश्व को बहुत हानि हुई है। इन लोगो की वजह से देश की प्रतिष्ठा भी कम हुई है और लोग इश्वर सुख के लिए इनके अविद्या जाल में फस जाते हैं। अपनी अंतरात्मा से पूछो और आप्त ग्रंथों को पड़ कर देखो क्या ये तरीका है इश्वर सुख का, वास्तव में जानोगे तो ये रास्ता है घोर नर्क अविद्या और दुःख के महा सागर का। हम भारतियों को इन सब से मुक्ति पाने का प्रयास करना चाहिए क्युकी ये भी एक बहुत बड़ा रोड़ा हैं उन्नति मार्ग का।

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

really a great blog

nitin tyagi ने कहा…

सौरभ जी नमस्ते
आज कल शिवलिंग के बारे मै बहुत सारी घटिया बाते फालाये जा रही हैं मुल्लो व् कुछ हिन्दुओं द्वारा जो की गलत प्रचार के अलावा कुछ नहीं
'शिव' परमात्मा के कल्याणकारी स्वरूप का नाम है और 'लिंग' का अर्थ 'प्रतीक' होता है. जो मार्ग, नियम, व्यवहार, आचरण और विचार हमें नीचता से विरत कर उच्चता की ओर ले जायें वही कल्याणकर हो सकते हैं. ऊँचाई की ओर जाता गोल स्तम्भ समतावादी एवं कल्याणकर उच्च विचारों को प्रवाहित करने वाला है.

CHNARA SHEKHER ने कहा…

shiv ling jaisa monument ki puja karana galat hai. ye to ek gyan hai ki. LING mane PURUSH. YONI mane MAYA, SARP mane MAUT. iske mane jo purush maya ke chakkar me rahega wo aneko bar marega. jo maya ko chhore dega wo janam maran se mukt hoga. bas itna hai N KI SHIVLING KI POOJA.

CHNARA SHEKHER ने कहा…

shiv ling jaisa monument ki puja karana galat hai. ye to ek gyan hai ki. LING mane PURUSH. YONI mane MAYA, SARP mane MAUT. iske mane jo purush maya ke chakkar me rahega wo aneko bar marega. jo maya ko chhore dega wo janam maran se mukt hoga. bas itna hai N KI SHIVLING KI POOJA.

Brahmachari Prahladanand ने कहा…

तंत्र तो वह है जो तन को तार देता है | यह जो तन है यह त्र यानी तीन गुणों का स्थान है तामस, राजस, सात्विक | जो विद्या इन तीन गुणों से तार दे यानी पार पंहुचा दे आत्मा तक वह है तंत्र |
तंत्र किसने कहा की ईश्वर की आराधना करने का मार्ग है | तंत्र तो साधना का मार्ग है | इसको साधना पड़ता है | किसी के आगे आरधना करके भीख नहीं मंगनी है इसमें | यह तो वह मार्ग है जो दिखाता है की ईश्वर कैसे बना जाता है |
जहाँ तक कोमार्य की बात है तो | कोम और आर्य | और आर्य होकर फिर कोम की बात नहीं तो किसकी बात |
तांत्रिक विद्या अनादी काल से है क्यूंकि यह तन अनादी है |
वैदिक विद्या क्या है की जो लोग मेहनत नहीं करते वह दूसरों की प्रसंसा करके और उस चीज़ को पाना चाहते है वह वेद विद्या है |
वेद में क्या है की परमात्मा की आराधना करो और साधना मत करो |
तंत्र संसार में सब जगह मिलता है | और सब जगह का तंत्र एक जैसा होता है उसमें बिलकुल भी भेद नहीं होता है |
भारत, अफ्रीका, ऑस्टेलिया, अमेरिका, यूरोप, एशिया, कहीं भी जाओ तंत्र अवश्य मिलेगा |
और वेद खाली भारत में | क्यूँकी और देशों में तो परमात्मा की प्रसंसा करने का अपना अलग-अलग मार्ग है |
और हर कोई यही कहता है की हमारा मार्ग उचित है | किन्तु तंत्र के विषय में यह बात नहीं | एक तांत्रिक दुसरे तात्रिक के विरोध में नहीं है |
क्यूंकि वह किसी को प्रसन्न नहीं करना चाहता है और दिखाना नहीं चाहता है की परमात्मा का मुझसे बढकर कोई भगत नहीं है |
तांत्रिक तो अपनी साधना में लगा रहता है | और अपने बल पर सब कार्य करता है |
और देव-देव आलसी पुकारा की कहावत के अनुसार यह परमात्मा को पुकारता रहता है और खुद कुछ नहीं करता है |
स्वार्थी और परमार्थी का अर्थ यह है |
स्वार्थी का मतलब जो अपनी अर्थी स्वयं उठाए वह स्वार्थी | यानी जिसको अपनी अर्थी उठाने के लिए चार कन्धों की जरुरत न रहे वह स्वार्थी |
परमार्थी वह जो हमेशा यह देखता रहे के पर की अर्थी कब उठती है | यानी जो दूसरों को कन्धा देने में ज्यादा आगे रहे |
शराब तो शुद्ध सात्विक और फलाहारी है क्यूंकि यह फल से बंटी है | तो फल तो हम देवता को चडाते हैं | शराब तो फल का रस है |
और दूध तो मांसाहार है | जो की किसी पशु में से आता है |
बलि किसकी चडाते जो बलि की तरह होता है | बलि और वामन की कहानी पढ़ी या सुनी होगी |
झाड और फूंक तो आजकल रेकी के नाम पर हो रही है | रेकी यानी आधुनिक ओझा |
राख मल कर देख लो तो इसका असर पता पड़ जाएगा की यह क्या असर करती है |
अघोरी को समखना इतना आसान नहीं है | तंत्र की आखरी सीडी का साधक है अघोरी |
जैन की परमपरा महा अघोरी ऋषभदेव से है |
और बोद्ध की परम्परा बुद्ध से है |
दोनों की साधना जग प्रसिद्ध है |
वेद तो स्तुति ग्रन्थ हैं जो किसी की स्तुति में लिखे हैं |
और बने बनाये उत्तर हैं | बने बनाये उत्तरों पर जो चलता है वह नक़ल ची कहलाता है |
तंत्र तो ऐसा मार्ग है की इसमें कोई उत्तर बना ही नहीं सकता है |
इसमें अगर सिद्ध होना है तो साधना मेहनत करनी पड़ेगी |
वेद है की टिकट लो गाडी में बैठो और सोते हुए गंतव्य तक पहुँच जाओ |
तंत्र है की कोई मार्ग ही नहीं है कोई गाडी ही नहीं है | इसमें तो तन ही मार्ग है और तन ही गाडी है | और इसी तन में चलना भी है | और सोते-सोते इस तन के साथ कुछ कर नहीं सकते तो जागना पड़ेगा | इसलिए तांत्रिक जागता है रातों में और सोता है दिन में |

aryaveer ने कहा…

"तांत्रिक विद्या अनादी काल से है क्यूंकि यह तन अनादी है |"
तन के अनादी होने की बात केवल आपसे तांत्रिको की बारीक़ बुद्धि में ही जाती होगी , हमने तो आत्मा निकलते ही तन के गलने की बात सुनी व् देखि है चाहे मनुष्यों का हो या पशू का !

"वैदिक विद्या क्या है की जो लोग मेहनत नहीं करते वह दूसरों की प्रसंसा करके और उस चीज़ को पाना चाहते है वह वेद विद्या है |"
प्रणाम आपकी वेड विद्या को! संपूर्ण वेड पुरुषार्थ की गाथा गाते है , और "मेहनत नहीं करते" तो केवल आप ही ने खोजा !!

"वेद में क्या है की परमात्मा की आराधना करो और साधना मत करो |"
उत्तम कोटि का योग करने का आधार वेद ही तो है , समाधी , साधना ये सब वैदिक ही है बंधू !!

"तंत्र संसार में सब जगह मिलता है | और सब जगह का तंत्र एक जैसा होता है उसमें बिलकुल भी भेद नहीं होता है |"
जी हाँ , शराब पीने में, नशा करने में , और उसी नशे के प्रभाव में सम्भोग करने में क्या अंतर मिलेगा ?

"| एक तांत्रिक दुसरे तात्रिक के विरोध में नहीं है |"
जी बिलकुल ,एक पाखंडी दुसरे का विरोध करे भी तो कैसे?? ऐसा करने पर तो अपनी ही पोल खुलेगी !!

"शराब तो शुद्ध सात्विक और फलाहारी है क्यूंकि यह फल से बंटी है |"
आपकी बात बिलकुल उचित है , आपको शीघ्र ही सब विज्ञानिको को जो शराब को हानिकारक बताते है समझाना चाहिए की शराब तो शुद्ध है!
आपको भारत सरकार से घर घर में शराब , और विद्यालयों में भी शराब बतवा ही देनी चाहिए!! क्यों उचित ही है ना ??

"और दूध तो मांसाहार है | जो की किसी पशु में से आता है |"
जिस चीज़ से पशू की मृत्यु नहीं हुई, जीव की हिंसा नहीं हुई वो मा"तांत्रिक विद्या अनादी काल से है क्यूंकि यह तन अनादी है |"
तन के अनादी होने की बात केवल आपसे तांत्रिको की बारीक़ बुद्धि में ही जाती होगी , हमने तो आत्मा निकलते ही तन के गलने की बात सुनी व् देखि है चाहे मनुष्यों का हो या पशू का !

"वैदिक विद्या क्या है की जो लोग मेहनत नहीं करते वह दूसरों की प्रसंसा करके और उस चीज़ को पाना चाहते है वह वेद विद्या है |"
प्रणाम आपकी वेड विद्या को! संपूर्ण वेड पुरुषार्थ की गाथा गाते है , और "मेहनत नहीं करते" तो केवल आप ही ने खोजा !!

"वेद में क्या है की परमात्मा की आराधना करो और साधना मत करो |"
उत्तम कोटि का योग करने का आधार वेद ही तो है , समाधी , साधना ये सब वैदिक ही है बंधू !!

"तंत्र संसार में सब जगह मिलता है | और सब जगह का तंत्र एक जैसा होता है उसमें बिलकुल भी भेद नहीं होता है |"
जी हाँ , शराब पीने में, नशा करने में , और उसी नशे के प्रभाव में सम्भोग करने में क्या अंतर मिलेगा ?

"| एक तांत्रिक दुसरे तात्रिक के विरोध में नहीं है |"
जी बिलकुल ,एक पाखंडी दुसरे का विरोध करे भी तो कैसे?? ऐसा करने पर तो अपनी ही पोल खुलेगी !!

"शराब तो शुद्ध सात्विक और फलाहारी है क्यूंकि यह फल से बंटी है |"
आपकी बात बिलकुल उचित है , आपको शीघ्र ही सब विज्ञानिको को जो शराब को हानिकारक बताते है समझाना चाहिए की शराब तो शुद्ध है!
आपको भारत सरकार से घर घर में शराब , और विद्यालयों में भी शराब बतवा ही देनी चाहिए!! क्यों उचित ही है ना ??

"और दूध तो मांसाहार है | जो की किसी पशु में से आता है |"
जिस चीज़ से पशू की मृत्यु नहीं हुई, जीव की हिंसा नहीं हुई वो मासाहार कैसे हुआ ?

"बलि किसकी चडाते जो बलि की तरह होता है | "
आप अपनी , परिवार जनों की , और अपने बचो की बलि क्यों नहीं चड़ा देते ? सत्य यदि आपसे तांत्रिको की बलि चड़ने लगे तो संसार को अपूर्व लाभ हो !

Aryaveer ने कहा…

"राख मल कर देख लो तो इसका असर पता पड़ जाएगा की यह क्या असर करती है |"
जी हमे तो हाथो को मैला करती ही दिखी !!

"अघोरी को समखना इतना आसान नहीं है | तंत्र की आखरी सीडी का साधक है अघोरी "
जी हाँ जो वमन करके , स्वयं ही उसे उठा कर खा ले !! छि छि !! उसे कोई क्या और क्यों समझे??

"तंत्र तो ऐसा मार्ग है की इसमें कोई उत्तर बना ही नहीं सकता है |"
जिस प्रकार के अनिष्ट कार्य आप लोग करते है , उसका कोई उत्तर बनेगा भी कैसे ??
जो लोग नशे में अपनी ही माताओ, बहनों के साथ भी सम्भोग करले और उसे परमात्मा प्राप्ति का साधन अथवा साधना बताये .. वो सभ्य समाज को क्या उत्तर देगा??

"वेद है की टिकट लो गाडी में बैठो और सोते हुए गंतव्य तक पहुँच जाओ |"
यदि ऐसा ही होता तोह अब तक बहुत पहुँच गए होते !! और आप तो उस प्रकार से भी नहीं पहुंचे अपितु जाते हुए लोगो को तंग करने का निश्चय कर लिया !! उत्तम है आपकी मेहनत !!

" इसलिए तांत्रिक जागता है रातों में और सोता है दिन में"
इस दलील से मझे सबसे बड़ा तांत्रिक तो उल्लू ही प्रतीत होता है !! उसे भी उल्लू कहते है आपको भी और क्या कहें ?