१.)सुखस्य मूलं धर्मः ।
सुख का मूल(कारण) धर्म है।
२.)धर्मस्य मूलमर्थः ।
धर्म का मूल अर्थ है।
३.)अर्थस्य मूलं राज्यम् ।
अर्थ का मूल राज्य है।
४.)राज्यमूलमिन्द्रियजयः
इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना ही राज्य का मूल है।
५.)इन्द्रियजयस्य मूलं विनयः ।
इन्द्रियों के विजय का मूल विनय है।
६.)विनस्य मूलं वृद्धोपसेवा ।
वृद्धों की सेवा करना विनय का मूल है।
७.)वृद्धोपसेवाया विज्ञानम् ।
वृद्धों की सेवा का मूल विज्ञान है।
८.)विज्ञानेनात्मानं संपादयेत ।
इसीलिए पुरुष विज्ञान से अपने-आपको सम्पन्न बनावे।
९.)संपादितात्मा जितात्मा भवति ।
जो पुरुष विज्ञान से सम्पन्न होता है, वह अपने ऊपर काबू पा सकता है।
१०.)जितात्मा सर्वार्थेस्संयुज्येत ।
अपने ऊपर काबू रखने वाला पुरुष सब अर्थों से सयुंक्त हो जाता है।
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर व सार्थक पोस्ट। धन्यवाद।
नोट-कृपया शब्द पुष्टिकरण हटाएं।
इस पोस्ट के लिेए साधुवाद
ये है लाइफ के असली फंडे
धन्यवाद इस पोस्ट के लिए भी
अत्यन्त गहन चिन्तन से उपजे ये मोती प्रस्तुत करने हेतु साधुवाद। सदा स्मरणीय !
thanks for knowledge
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