११.) अर्थसम्पप्रकृतिसम्पदं करोति ।
अर्थ-सम्पत्ति ‘प्रकृति-सम्पत्ति’ (अमात्य, सेना, मित्र आदि सम्पत्ति)को उत्पन्न करने वाली होती है।
१२.) प्रकृतिसम्पदा ह्मानायकमपि राज्यं नीयते ।
प्रकृतिसम्पत्ति के द्वारा नेतारहित राज्य का भी सञ्चालन किया जा सकता है।
१३.) प्रकृतिकोपस्सर्वकोपेभ्यो गरीयान् ।
‘प्रकृतिकोप’ सब कोपों से बलवान होता है।
१४.) अविनीतस्वामिलाभः श्रेयान् ।
विनयहीन स्वामी के लाभ से , स्वामी का लाभ न् होना ही अच्छा है।
१५.) संपाद्यात्मानमन्विच्छेत्सहायवान् ।
अपने आपको शक्ति-सम्पन्न बनाकर, फिर सहायकों की इच्छा करो।
१६.) नासहायस्य मन्त्रनिश्चयः ।
सहायकहीन राजा के मन्त्र(विचार) का, कभी निश्चय नहीं हो सकता।
१७.) नैकं चक्रं परिभ्रमयति ।
एक पहिया कभी गाड़ी को घुमा नहीं सकता।
१८.) सहायस्समसुखदुःखः ।
सहायक वही होता है, जो अपने सुख और दुःख में बराबर का साथी रहे।
१९.) मानि प्रतिमानिनमात्मनि द्वितीयं मन्त्रमुत्पादयेत् ।
मानी पुरुष , अपने समान दूसरे मानि पुरुष को ही अपना सलाहकार बनावे।
२०.) अविनितं स्नेहमात्रेण न् मन्त्रे कुर्वीत् ।
विनयपुरुष को , केवल स्नेह के कारण, कभी मन्त्र (सलाह या विचार) करने में सम्मलित न करे।
२१.) श्रुतवन्तमुपधाशुद्धं मंत्रिणं कुर्वीत् ।
2 टिप्पणियां:
उत्तम विचार । देश की ज्वलंत समस्या , मुसलमान पर भी ऋषि के विचार प्रकाशित करेँ । 14 वेँ समुल्लास से आरंभ करेँ ।
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
(आईये एक आध्यात्मिक लेख पढें .... मैं कौन हूं।)
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